देवा, महादेवा, शायर खुमार, हाकी खिलाड़ी केडी सिंह बाबू के अलावा बाराबंकी की पहचान बनी चंद्र कला

 बाराबंकी:पवित्र धाम देवा, महादेवा, शायर खुमार, हाकी खिलाड़ी केडी सिंह बाबू के अलावा बाराबंकी की पहचान एक और चीज से होती है. यहां की स्पेशल मिठाई चंद्रकला की पहचान दूर-दूर तक है. यहां के लोग अपने रिश्तेदारों और खास मेहमानों को चंद्रकला खिलाना नहीं भूलते. तकरीबन छह दशक से चंद्रकला यहां दूसरी मिठाइयों पर भारी है शायद यही वजह है कि पहले जहां ये चुनिंदा दुकानों पर ही बना करता था वहीं अब इसके कारीगर बढ़ने लगे हैं.


कहते हैं तमाम व्यंजनों के बाद मीठा खाने से ही भोजन पूरा होता है. ऐसे भी कुछ लोगों को मीठा खाना इतना पसंद होता है कि उनकी नजर नये नये बेहतरीन जायकों को तलाशती रहती है. ऐसी ही एक मिठाई है चंद्रकला, जिसका नाम सुनते ही शौकीनों के मुंह में पानी आ जाता है. चंद्रकला स्वाद और क्वालिटी से भरपूर मिठाई है, जो विशेष तौर से उत्तरी और पूर्वी भारत तक अपनी अलग पहचान रखती है. खास बात यह है कि यूपी के बाराबंकी में इसका बेहतरीन जायका आपको मिल सकता है.
बाराबंकी में एक ऐसी दुकान है, जहां दशकों से चंद्रकला बनाई जा रही है. शहर ही नहीं आसपास के जनपदों और गांवों के लोग चंद्रकला का स्वाद लेने लाइन लगाकर दुकान पर खड़े नजर आते हैं. बाराबंकी जिले के डीएम आवास के सामने बिंद्रा स्वीट्स अगर आप जाएंगे तो देखेंगे कि यहां इस मिठाई का क्या जलवा है! कई सालों में इस दुकान की बदौलत चंद्रकला धीरे-धीरे अपनी पहचान जिले में बनाने में कामयाब हो गई है.

चंद्रकला के लिए शौक की बानगी यह है कि खरीदारी के लिए दुकान के भीतर और बाहर लगी भीड़ बाकायदा लाइन लगाए नज़र आती है. इस लाइन में जिले के अधिकारी हों या कर्मचारी, गणमान्य हों या सामान्य सभी नजर आ जाते हैं. लगभग 50 साल पहले इस मिठाई की यहां बिक्री शुरू हुई थी और अब अपनी मिठास और लज्जत से भरपूर चंद्रकला बाराबंकी में फेमस हो चुकी है.

कैसे बनाई जाती है 'चंद्रकला' मिठाई

  • पहले मैदा में पानी और घी मिलाकर उसे देर तक गूंथा जाता है.
  • फिर उसकी छोटी छोटी टिकिया बना ली जाती हैं.
  • एक टिकिया में पहले से ही तैयार खोया, मेवा और इलायची के मिश्रण को रखा जाता है.
  • ऊपर से दूसरी टिकिया रखकर इसको बंद कर दिया जाता है.
  • उसके बाद इसको किनारे-किनारे बड़े ही खास ढंग से तैयार कर डिजाइन दी जाती है.
  • इन कच्चे चंद्रकला को कढ़ाई में डालकर तेल या घी में फ्राई किया जाता है.
  • आंच तेज न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है और इसे सुनहरा होने तक तला जाता है.
  • फिर इनको निकालकर पहले से ही तैयार शक्कर की गाढ़ी चाशनी में डाल दिया जाता है.
  • 10 से 15 मिनट बाद इसे चाशनी से निकाल लिया जाता है.
  • इस तरह चंद्रकला बनकर तैयार हो जाती है।
  • तीन पीढ़ियों पहले चंद्रकला बनाने की शुरुआत सफदरगंज से हुई थी. फिर हमारा परिवार मसौली आ गया और तब से यहीं पर दुकान है. चंद्रकला जैसे मिठाई दूसरी जगह कहीं नहीं बनती लेकिन इसकी डिमांड देखकर अब तमाम दुकानें खुल गई हैं.
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